स्कंद षष्ठी व्रत 2025: भगवान कार्तिकेय को समर्पित यह व्रत क्यों है खास, जानिए पूजन विधि और लाभ

हिंदू पंचांग के अनुसार, स्कंद षष्ठी व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र, भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। इस दिन श्रद्धालु विशेष पूजा-अर्चना के साथ उपवास रखते हैं और जीवन में संतान सुख, आरोग्य, शत्रु पर विजय तथा मानसिक शांति की कामना करते हैं। इस वर्ष स्कंद षष्ठी का व्रत 1 जून, रविवार को मनाया जा रहा है, क्योंकि षष्ठी तिथि का उदयकाल इसी दिन होगा।

भगवान कार्तिकेय: आरोग्य, विजय और संतान रक्षा के देवता

भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में मुरुगन, शरवण, कुमारस्वामी आदि नामों से जाना जाता है। वे देवताओं के सेनापति हैं और उन्हें युद्ध कौशल, पराक्रम और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उनकी पूजा विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए शुभ मानी जाती है जिन्हें संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो, या जिनकी संतान अस्वस्थ रहती हो।

पूजन विधि: ऐसे करें भगवान स्कंद की आराधना

  1. ब्रहम मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
  2. पूजा स्थल को साफ कर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  3. व्रत का संकल्प लें: “मम सकलदुःख-दारिद्र्य-नाशार्थं, संतान सौभाग्य-वृद्ध्यर्थं स्कंद षष्ठी व्रतमहं करिष्ये।”
  4. गंगाजल, दूध, दही, शहद और जल से अभिषेक करें।
  5. उन्हें लाल पुष्प, मोर पंख, रोली, अक्षत, चंदन और दीप-धूप अर्पित करें।
  6. भगवान कार्तिकेय को गुड़, चने, मीठी खीर, व फल का भोग लगाएं।
  7. मंत्र जाप करें:
    • ॐ स्कंदाय नमः
    • ॐ कार्तिकेयाय नमः
    • ॐ षष्ठी देव्यै नमः
    • ॐ शरवणभवाय नमः

यदि प्रतिमा उपलब्ध न हो, तो भगवान शिव और माता पार्वती के साथ उनके पूजन का विधान भी फलदायी होता है।

व्रत में रखें ये सावधानियां

  • इस दिन मांस, शराब, प्याज-लहसुन जैसे तामसिक पदार्थों का सेवन वर्जित है।
  • पूर्ण व्रत रखने वाले व्यक्ति अन्न का त्याग करें और फलाहार करें।
  • क्रोध, कटु वचन, झूठ और नकारात्मकता से बचें।
  • व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • पूजा सूर्य उदय से पहले या सूर्योदय के आसपास ही संपन्न कर लेनी चाहिए।

व्रत का महत्व और लाभ

  • जिन लोगों को मंगल दोष है, उनके लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा अत्यंत लाभकारी होती है क्योंकि वे मंगल ग्रह के अधिपति माने जाते हैं।
  • इस व्रत से शारीरिक रोग, शत्रुओं से रक्षा और मुकदमे जैसी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  • मोर पंख भगवान कार्तिकेय को अर्पित करना और उसे घर में रखना सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है और संतान की रक्षा में सहायक माना जाता है।
  • यह व्रत न केवल कष्टों से मुक्ति दिलाता है बल्कि धैर्य, साहस और आत्मबल भी प्रदान करता है।

स्कंद षष्ठी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का पर्व है भगवान कार्तिकेय की आराधना से जीवन में शक्ति, संतुलन और सफलता प्राप्त होती है। यह व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाए तो निश्चित ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और कष्टों का नाश होता है।

Written by Sharad Shrivastava

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