नई दिल्ली | 16 मई 2025
भारत और अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के बीच गुरुवार को पहली बार विदेश मंत्री स्तर पर आधिकारिक बातचीत हुई भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से फोन पर चर्चा की, जिसमें उन्होंने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करने के लिए अफगानिस्तान का आभार व्यक्त किया| इस बातचीत का एक अहम पहलू यह रहा कि अफगान सरकार ने पाकिस्तान के उस आरोप को भी खारिज किया जिसमें कहा गया था कि भारतीय मिसाइलों ने अफगान क्षेत्र को टारगेट किया है जयशंकर ने इस समर्थन के लिए अफगान पक्ष को धन्यवाद कहा और दोनों देशों के पुराने रिश्तों को दोबारा मजबूत करने की जरूरत पर ज़ोर दिया।
अफगानिस्तान की वीजा और कैदियों को लेकर भारत से अपील
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुत्ताकी ने भारत से आग्रह किया कि अफगान नागरिकों, खासकर व्यापारियों और मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए आने वाले मरीजों को वीजा सुविधा दी जाए। इसके साथ ही उन्होंने भारत में बंद अफगान कैदियों की रिहाई और स्वदेश वापसी की मांग भी रखी भारत ने अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद सुरक्षा कारणों से वीजा प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। जयशंकर ने इन मामलों को सहानुभूति पूर्वक देखने का आश्वासन दिया है।
कैसे शुरू हुआ भारत-तालिबान संपर्क ?
यह फोन बातचीत अचानक सामने नहीं आई इससे पहले जनवरी 2025 में दुबई में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और मुत्ताकी के बीच पहली अनौपचारिक मुलाकात हुई थी। उसके बाद 28 अप्रैल को विदेश मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी आनंद प्रकाश ने भी मुत्ताकी से भेंट की थी दोनों मीटिंग्स में व्यापार, वीजा और मानवीय सहायता पर चर्चा हुई थी |अब जयशंकर की सीधी बातचीत यह संकेत देती है कि भारत तालिबान को भले ही अभी मान्यता नहीं दे रहा, लेकिन पारदर्शी और सीमित संपर्क बनाए रखना चाह रहा है।
भारत की रणनीति: मान्यता नहीं, मगर संवाद जरूरी
भारत ने अब तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है लेकिन 2001 से 2021 तक के दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान को करीब ₹25,000 करोड़ की सहायता दी है जिसमें शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य और संसद भवन जैसी संरचनाएं शामिल हैं भारत जानता है कि अफगानिस्तान भले आज भू-राजनीतिक रूप से अनिश्चित हो, लेकिन रणनीतिक रूप से आज भी बेहद अहम देश है।
तालिबान को अब भारत की ज़रूरत ज़्यादा
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, तालिबान सरकार अब पाकिस्तान पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहती कतर के अल-जज़ीरा ने एक रिपोर्ट में कहा कि अफगानिस्तान अब भारत जैसे देशों से संबंधों को आगे बढ़ाकर वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मज़बूत करना चाहता है वहीं भारत के लिए भी यह वक्त कूटनीतिक दूरी और व्यावहारिक संवाद के बीच संतुलन साधने का है|
बदली हुई दुनिया में रिश्तों की नई परिभाषा
एस. जयशंकर और मुत्ताकी की यह बातचीत केवल एक कूटनीतिक कॉल नहीं थी, बल्कि एक नई हकीकत को स्वीकार करने की दिशा में भारत का पहला स्पष्ट कदम था। तालिबान भले भारत के लिए वैचारिक रूप से चुनौतीपूर्ण रहा हो, लेकिन परिस्थितियां अब संवाद को अनिवार्य बना रही हैं अब देखना यह है कि आने वाले महीनों में क्या भारत और तालिबान सरकार के बीच यह बातचीत स्थायी संपर्क की शक्ल ले पाती है या नहीं।
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