धूमावती जयंती: तंत्र साधना और आत्मशुद्धि का दिव्य अवसर

भारतीय सनातन परंपरा में दस महाविद्याओं का विशिष्ट स्थान है और इन्हीं में से एक हैं मां धूमावती जो जीवन की कठोर सच्चाइयों, वैराग्य और त्याग की साक्षात प्रतिमा मानी जाती हैं ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाई जाने वाली धूमावती जयंती, विशेष रूप से तंत्र साधकों के लिए एक अत्यंत शुभ और शक्ति-संपन्न तिथि मानी जाती है।

धूमावती: महाविद्या की रहस्यमयी शक्ति

धूमावती को विधवा देवी के रूप में पूजा जाता है उनका स्वरूप न तो सौंदर्य का प्रतीक है और न ही सांसारिक आकर्षण का प्रतिनिधित्व करता है वे उस गहन आत्मबोध का प्रतीक हैं, जो संसार की मोह-माया से परे जाकर आत्मा की शक्ति को पहचानने की प्रेरणा देती हैं उनका वाहन कौवा है और उनका आभामंडल धुएं से आच्छादित बताया गया है जो जीवन के अस्थिर स्वरूप को दर्शाता है।

तांत्रिक साधना में महत्व

धूमावती जयंती साधकों के लिए विशेष इसलिए मानी जाती है क्योंकि इस दिन साधना करने से गुप्त सिद्धियों, नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति और अदृश्य बाधाओं से रक्षा की प्राप्ति होती है यह दिन आत्मबल बढ़ाने, आंतरिक शक्ति को जाग्रत करने और वैराग्य को सशक्त करने का अवसर प्रदान करता है।

भक्त क्या करें ?

भले ही तंत्र साधना हर किसी का मार्ग न हो, लेकिन आम भक्त भी इस दिन धूमावती माता का आशीर्वाद कुछ आसान उपायों द्वारा प्राप्त कर सकते हैं

  • पीतल या मिट्टी के दीपक में सरसों के तेल का दीप जलाएं
  • जप करें ॐ धूं धूमावत्यै नमः कम से कम 108 बार
  • काले तिल का दान करें
  • किसी जरूरतमंद विधवा महिला को वस्त्र या अन्न का दान दें

इन उपायों से जीवन में छायी दरिद्रता, मानसिक बेचैनी और पारिवारिक कलह जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलने की आशा की जाती है।

धूमावती माता के प्रमुख तीर्थ स्थल

भारतवर्ष में धूमावती देवी के कुछ प्रमुख और रहस्यमयी स्थलों का उल्लेख मिलता है

  1. काशी , उत्तर प्रदेश
    कमाच्छा देवी मंदिर परिसर में स्थित यह मंदिर सबसे प्रसिद्ध है यहां तांत्रिक पद्धति से पूजा होती है और साधक विशेष रूप से यहां सिद्धि प्राप्ति के लिए आते हैं।
  2. सिवालिक पर्वतमाला, उत्तराखंड
    गुप्त तांत्रिक मान्यताओं के अनुसार, हिमालय क्षेत्र में मां धूमावती के कुछ गुप्त मंदिर स्थित हैं ये स्थान सामान्य भक्तों के लिए प्रायः अज्ञात रहते हैं और केवल अनुभवी साधकों को ही इनका पता होता है।
  3. गया और मुंगेर, बिहार
    तांत्रिक साधना की दृष्टि से प्रसिद्ध ये स्थल भी मां धूमावती की उपासना के लिए जाने जाते हैं हालांकि, यहां के अधिकांश पीठ गोपनीय होते हैं।
  4. कामख्या, असम
    विश्वविख्यात कामख्या मंदिर परिसर में मां धूमावती की उपस्थिति मानी जाती है हालांकि उनका अलग मंदिर नहीं है, फिर भी तांत्रिक अनुष्ठानों में उनकी उपासना प्रमुख रूप से की जाती है।

धूमावती जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मबोध और आंतरिक जागरण का ऐसा अवसर है जो साधक और भक्त दोनों को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करने का मार्ग दिखाता है यह दिन हमें सिखाता है कि जीवन की कठोर सच्चाइयों में भी ज्ञान और शक्ति छिपी होती है बस जरूरत होती है उन्हें स्वीकार कर साधना में बदलने की।

Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं, पौराणिक कथाओं और परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य श्रद्धालुओं को जानकारी देना है, न कि किसी धारणा की पुष्टि करना।

Written by Sharad Shrivastava

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