धर्म डेस्क | वृंदावन
भगवान श्रीकृष्ण की पावन नगरी वृंदावन में एक ऐसा दिव्य मंदिर स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि वहां बैकुंठ लोक का द्वार खुलता है। यह मंदिर है श्री रंगनाथ जी मंदिर, जिसे दक्षिण भारत की स्थापत्य कला और परंपरा के अनुसार निर्मित किया गया है यह मंदिर साल भर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है, लेकिन इसका एक विशेष द्वार जिसे बैकुंठ द्वार कहा जाता है वर्ष में केवल एक बार ही खोला जाता है, और उस दिन यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं।
कहां स्थित है यह मंदिर ?
श्री रंगनाथ जी का यह भव्य मंदिर उत्तर प्रदेश के वृंदावन शहर में चुंगी चौराहा क्षेत्र के पास स्थित है स्थानीय लोग इसे रंगजी मंदिर के नाम से जानते हैं यह मंदिर भगवान विष्णु के एक रूप, रंगनाथ स्वरूप को समर्पित है। इसकी वास्तुकला पूरी तरह से द्रविड़ शैली पर आधारित है, जो उत्तर भारत में बहुत कम देखने को मिलती है।
बैकुंठ द्वार कब खुलता है ?
श्री रंगनाथ जी मंदिर में हर वर्ष बैकुंठ उत्सव मनाया जाता है, जो कुल 21 दिनों तक चलता है। इस उत्सव के ग्यारहवें दिन, यानी बैकुंठ एकादशी के शुभ अवसर पर मंदिर का विशेष द्वार खोला जाता है, जिसे “बैकुंठ द्वार” कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भक्त इस द्वार से प्रवेश करते हैं, उन्हें बैकुंठ लोक में स्थान प्राप्त होता है। इस विशेष दिन, मंदिर में दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। भक्तजन पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ रात्रि से ही लाइन में लग जाते हैं, ताकि उन्हें इस दुर्लभ अवसर का लाभ मिल सके।
इस परंपरा के पीछे क्या है मान्यता ?
मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार, दक्षिण भारत के एक संत ने भगवान विष्णु से प्रश्न किया था कि जीवात्मा को मोक्ष कैसे प्राप्त होता है और बैकुंठ कैसे जाया जा सकता है ? उत्तर में भगवान विष्णु ने बताया कि बैकुंठ जाने का मार्ग उस विशेष द्वार से होकर जाता है, जो एकादशी पर खुलता है। उसी समय से यह परंपरा शुरू हुई, जिसे आज तक श्रद्धापूर्वक निभाया जाता है।
धार्मिक महत्ता
वैकुंठ एकादशी हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह दिन केवल उपवास या भक्ति का नहीं, बल्कि ईश्वर से एक सीधा जुड़ाव स्थापित करने का अवसर माना जाता है। श्री रंगनाथ जी मंदिर में वैकुंठ द्वार से प्रवेश करना मोक्ष के मार्ग की ओर पहला कदम माना जाता है।
वृंदावन में बसे इस दक्षिण शैली के मंदिर की परंपरा और मान्यताएं न केवल आध्यात्मिक रूप से भक्तों को आकर्षित करती हैं, बल्कि यह मंदिर सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक एकता का भी प्रतीक है यदि आप भी जीवन में एक बार बैकुंठ द्वार से प्रवेश की अनुभूति लेना चाहते हैं, तो अगले वर्ष बैकुंठ एकादशी पर श्री रंगनाथ जी मंदिर की यात्रा अवश्य करें।
(नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और जनविश्वासों पर आधारित है। किसी भी आध्यात्मिक निर्णय के लिए अपने धार्मिक गुरु या पंडित से सलाह अवश्य लें।)
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