Eid al-Adha 2025: बकरीद पर क्यों दी जाती है कुर्बानी? जानिए हज़रत इब्राहीम और इस्माईल की आस्था से जुड़ी प्रेरक कहानी

धर्म डेस्क |देशभर में आज मुस्लिम समाज ईद-उल-अजहा (बकरीद) की पाक और मुबारक घड़ी मना रहा है, जो त्याग, ईमान और समर्पण की गहराई को दर्शाने वाला पर्व है। यह दिन त्याग, भक्ति और समर्पण की गहराई को दर्शाता है। हर साल इस दिन दुनिया के कोने-कोने में करोड़ों मुसलमान पशु कुर्बानी के जरिए अपने ईमान और श्रद्धा को अल्लाह के प्रति प्रकट करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर बकरीद पर कुर्बानी की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई ? इसका संबंध इस्लाम के एक महान पैगंबर हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) की परीक्षा और आस्था से जुड़ा है

कब और क्यों मनाई जाती है बकरीद?

ईद-उल-अजहा इस्लामी पंचांग के अनुसार, जिल-हिज्जा माह की 10वीं तारीख को मनाई जाती है। यह हज के तुरंत बाद आता है और इसे “त्याग का त्योहार” कहा जाता है। इस दिन मुसलमान अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्रिय वस्तु को समर्पित करने की परंपरा निभाते हैं – और इसी भाव से दी जाती है कुर्बानी।

हज़रत इब्राहीम और इस्माईल की कुर्बानी की कहानी

इस ऐतिहासिक और धार्मिक कथा की शुरुआत होती है हज़रत इब्राहीम से, जिन्हें अल्लाह ने उनकी भक्ति की कसौटी पर परखना चाहा। माना जाता है कि एक रात इब्राहीम को सपना आया जिसमें अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज़ को उसकी राह में कुर्बान करें।

इब्राहीम ने यह सपना केवल एक संकेत नहीं माना, बल्कि उसे एक दिव्य आज्ञा समझा। उन्होंने जब सोचा कि उनके लिए सबसे प्रिय कौन है, तो जवाब था – उनका बेटा हज़रत इस्माईल। उन्होंने यह बात अपने बेटे से साझा की, और इस्माईल ने बिना किसी विरोध के इस आदेश को स्वीकार कर लिया।

जब इब्राहीम अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हुए और उन्हें जमीन पर लिटाया, तभी अल्लाह ने अपनी रहमत दिखाई। जैसे ही छुरी चली, अल्लाह ने इस्माईल को सुरक्षित रखते हुए उसकी जगह एक दुम्बा (भेड़) भेज दिया। कुर्बानी तो हुई – लेकिन उस भावना, नीयत और समर्पण की, जो इब्राहीम और इस्माईल ने अल्लाह के प्रति दिखाई।

इस घटना का धार्मिक महत्व

इस घटना ने एक मजबूत संदेश दिया – जब इंसान की नीयत साफ हो और उसका भरोसा ईश्वर में अटूट हो, तो कोई भी परीक्षा बड़ी नहीं होती। बकरीद इसी भावना की प्रतीक है, जिसमें आस्था, आज्ञाकारिता और त्याग सर्वोपरि हैं।

मुसलमान इस दिन कुर्बानी के जरिए यह जताते हैं कि वे भी अपने जीवन में अल्लाह की इच्छाओं को सर्वोच्च मानते हैं, और अपनी इच्छाओं, सुविधाओं, यहां तक कि अपनी प्रिय चीज़ों को भी उसकी राह में समर्पित कर सकते हैं।

आज क्यों दी जाती है कुर्बानी?

बकरीद पर की जाने वाली कुर्बानी आज भी उसी भावना को दोहराती है। यह केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण और मानवता के लिए त्याग का प्रतीक है। बकरी, भेड़, ऊंट या दुम्बा जैसे जानवरों की कुर्बानी करके, मुसलमान समाज के ज़रूरतमंदों के साथ उसका मांस बांटते हैं – ताकि हर किसी को इस त्योहार की खुशी मिल सके।

बकरीद सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संदेश है – कि जब इंसान सच्चे दिल से किसी उच्च शक्ति में भरोसा करता है, तो उसके फैसले और उसका त्याग भी उसी स्तर पर स्वीकार किया जाता है। हज़रत इब्राहीम और इस्माईल की कहानी हमें सिखाती है कि त्याग में ही सबसे बड़ा विश्वास छिपा होता है।

Written by Sharad Shrivastava

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