Nirjala Ekadashi 2025: इस विधि से करें पिंडदान, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद और दूर होंगे पितृ दोष

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन और अत्यंत पुण्यदायी माना गया है इस दिन न केवल अन्न का त्याग किया जाता है, बल्कि जल तक ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए इसे “निर्जला” कहा गया है इस बार यह एकादशी 6 जून 2025, शुक्रवार को पड़ रही है यह दिन केवल व्रत और भगवान विष्णु की पूजा के लिए नहीं, बल्कि पूर्वजों की तृप्ति के लिए भी अत्यंत शुभ माना गया है। इस विशेष अवसर पर पिंडदान और तर्पण के माध्यम से पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है।

क्यों खास है निर्जला एकादशी पर पिंडदान ?

हालांकि पारंपरिक रूप से पिंडदान पितृपक्ष में किया जाता है, लेकिन शास्त्रों में कई ऐसी विशेष तिथियों का उल्लेख है, जब पूर्वजों के निमित्त कर्म करने से अधिक पुण्य मिलता है। निर्जला एकादशी ऐसी ही एक तिथि है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के पूजन के साथ पितरों के लिए किए गए तर्पण और दान से उनका आशीर्वाद तुरंत प्राप्त होता है।

ऐसे करें सरल पिंडदान व तर्पण

  • स्नान और संकल्प: प्रातः काल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शांत चित्त से व्रत का संकल्प लें।
  • पितरों का ध्यान: भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए अपने पितरों को स्मरण करें और मन ही मन उनसे शांति व आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
  • जल और तिल से तर्पण: एक पात्र में ताजा जल लें, उसमें काले तिल, कुछ चावल और गंगाजल मिलाएं। इस जल को दक्षिण दिशा की ओर मुख कर के धीरे-धीरे अर्पित करें।
  • चावल से पिंड निर्माण: थोड़े से पके चावल में तिल, दूध और गंगाजल मिलाकर छोटे पिंड बनाएं। इसे गाय को खिला देना शास्त्रसम्मत उपाय माना गया है।
  • दीपदान: संध्या के समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके घर के मुख्य द्वार या तुलसी के समीप तिल के तेल का दीपक जलाएं। यह पितरों को मार्ग देने का प्रतीक होता है।

जलदान: सबसे बड़ा पुण्य

निर्जला एकादशी पर जल का दान विशेष महत्व रखता है आप घर में एक जल कलश रख सकते हैं, जिस पर सफेद कपड़ा, मिश्री या चीनी और दक्षिणा रखकर किसी योग्य ब्राह्मण को दान दें। इसके अलावा:

  • राहगीरों को ठंडा पानी पिलाना
  • सार्वजनिक स्थानों पर प्याऊ लगवाना
  • मंदिर में मिट्टी या तांबे का घड़ा दान करना

इन सभी कार्यों को पितरों की तृप्ति और पितृ दोष से मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय माना गया है।

पारण से पहले करें ब्राह्मण सेवा

एकादशी व्रत का पारण अगले दिन (द्वादशी) को उचित समय पर किया जाता है पारण से पहले यदि संभव हो तो किसी भूखे या योग्य ब्राह्मण को भोजन कराना, वस्त्र या दक्षिणा देना बहुत फलदायी होता है। इससे न केवल पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि घर में सुख-समृद्धि और मानसिक शांति भी बनी रहती है।

क्या चावल का पिंड बनाना वर्जित है ?

कुछ परंपराओं में एकादशी पर चावल से परहेज किया जाता है, लेकिन यह व्रतधारी पर निर्भर करता है। यदि आप स्वयं व्रत कर रहे हैं और चावल ग्रहण नहीं कर रहे, तो सांकेतिक पिंड के रूप में चावल, तिल और दूध का प्रयोग किया जा सकता है।

निर्जला एकादशी केवल आत्मशुद्धि का दिन नहीं, बल्कि पूर्वजों के लिए श्रद्धा प्रकट करने का दुर्लभ अवसर भी है। इस दिन का हर कार्य चाहे वो तर्पण हो, जलदान हो या दीपदान सीधे पितरों तक पहुंचता है। यदि आप किसी विशेष परंपरा को मानते हैं, तो किसी जानकार पंडित से मार्गदर्शन लेना भी लाभकारी होगा। श्रद्धा और नियम के साथ किया गया हर प्रयास, पूर्वजों का आशीर्वाद जरूर दिलाएगा।

Written by Sharad Shrivastava

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