जगदलपुर |
बस्तर अंचल के घने जंगलों में हर साल की तरह इस बार भी हजारों आदिवासी परिवार तेंदूपत्ता संग्रहण के लिए तैयार थे। परंतु इस बार मौसम ने उनका साथ नहीं दिया। समय से पहले मानसून की दस्तक और लगातार हो रही असमय बारिश व ओलावृष्टि ने न केवल तेंदूपत्तों की गुणवत्ता को प्रभावित किया, बल्कि संग्रहण लक्ष्य को भी अधूरा छोड़ दिया।
पत्तों में बसी जीवन की आस
बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और जगदलपुर जैसे जिलों में तेंदूपत्ता सिर्फ वन उत्पाद नहीं, बल्कि हजारों आदिवासी परिवारों की सालभर की कमाई का सहारा है। हर वर्ष लाखों पत्ते चुनते हुए आदिवासी संग्राहक अपने बच्चों की पढ़ाई, परिवार की जरूरतों और त्योहारों के लिए सपने संजोते हैं। लेकिन इस साल, आसमान से बरसी बारिश ने उन सपनों को भीगा दिया है।
संग्रहण के आंकड़े चिंताजनक
वन विभाग ने इस सीजन में चारों जिलों के 119 लॉटों से कुल 2,70,600 मानक बोरे तेंदूपत्ता संग्रहित करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन अब तक सिर्फ 92 लॉटों में ही काम शुरू हो पाया है, और कुल संग्रहण 1,17,859 बोरों तक ही सीमित रह गया है जो कि कुल लक्ष्य का केवल 43.55% है।
बारिश और ओलावृष्टि ने बिगाड़ा खेल
इस साल अप्रैल के आखिरी सप्ताह से ही बस्तर में मौसम ने करवट लेना शुरू कर दिया। असमय बारिश और तेज ओलों ने तेंदूपत्तों को सूखा और काला कर दिया है, जिससे उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। इस कारण उनका बाज़ार मूल्य भी घटने की आशंका है। वन विभाग के अधिकारियों ने भी माना है कि मौसम की मार से उत्पादन और संग्रहण दोनों पर बुरा असर पड़ा है।
सिर्फ पत्ते नहीं, आजीविका भी संकट में
तेंदूपत्ता संग्रहण का सीजन बस्तर के आदिवासी समुदायों के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता का समय होता है। लेकिन इस बार न केवल कम संग्रहण हो रहा है, बल्कि देरी से भुगतान और घटती गुणवत्ता ने उनके सामने एक और संकट खड़ा कर दिया है। हर हाथ जो जंगल से पत्ते बीनता है, उसमें एक उम्मीद होती है अपने बच्चों की किताब, रसोई का राशन और त्योहार की मिठास की। लेकिन जब समय पर मौसम साथ नहीं देता, तो यह मेहनत सिर्फ थकान में बदल जाती है, आमदनी में नहीं।
अब सवाल व्यवस्था और भविष्य का
सवाल अब सिर्फ एक फसल या वन उत्पाद का नहीं है, सवाल उन हज़ारों चेहरों का है जो हर साल सरकार की योजनाओं और मौसम की मेहरबानी पर निर्भर रहते हैं। क्या उनके लिए कोई वैकल्पिक योजना है? क्या हर साल बदलते मौसम के अनुरूप तेंदूपत्ता नीति को लचीला नहीं बनाया जाना चाहिए ?
बस्तर में तेंदूपत्ता केवल व्यापार नहीं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। असमय बारिश ने इस बार कई परिवारों की योजनाओं को तोड़ दिया है। अब जरूरी है कि शासन-प्रशासन न केवल मौजूदा नुकसान की भरपाई करे, बल्कि भविष्य में ऐसी प्राकृतिक चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस नीति बनाए।
0 Comments